Sengol kya hai? जिसे नई संसद भवन में स्थापित किया जायेगा

सेंगोल क्या होता है?

सेंगोल भारत का एक प्राचीन स्वर्ण राजदण्ड है। इसका इतिहास बहुत पुराना है. जो चोल साम्राज्य से जुड़ा है। सेंगोल को सत्ता हस्तानंतरण का प्रतीक मना जाता है , इसमें न्यायपूर्ण शासन की अपेक्षा की जाती है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत गणराज्य के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को इसे सौंप था।

28 मई को बहुप्रतीक्षित नए संसद भवन का भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भव्य तरीके से पूरे विधि विधान से उद्घाटन किया गया. आज हर कोई इंटरनेट पर sengol सर्च कर रहा है. भारतीय संसद भवन के उद्घाटन के साथ-साथ segol भी चर्चा का विषय बन गया है. आजकल हर कोई सैंगोल के बारे में जानना चाह रहा है. इस आर्टिकल के माध्यम से हम आज विस्तार से चर्चा करेंगे अतः आप लोग इस आर्टिकल को पूरी तरह से पढ़ें मुझे विश्वास है कि इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपके सैंगोल से संबंधित सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा

sengol कहाँ स्थापित होगा

सत्ता और संप्रभुता परिवर्तन के प्रतीक सैंगोल के बारे में लोगों को अब तक कुछ पता नहीं था लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा दिए गए इस राजदंड को गिफ्ट मानकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के इलाहाबाद स्थित पैतृक घर पर आनंद म्यूजियम में रख दिया गया. और आज तक इसकी कोई चर्चा नहीं हुई. लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे दोबारा चर्चा में ला दिया. भारत के गृह मंत्री अमित शाह के बयान के अनुसार सैंगोल को लोकसभा स्पीकर के आसान के पास में पूरे हिंदू विधि विधान से स्थापित किया जाएगा.

सेंगोल की पूरी कहानी

जाने क्या होता है sengol और भारतीय संसद भवन में क्या है इसका महत्व

सेंगोल यानी राजदंड एक सिंबल जिसके ऊपरी सिरे पर नंदी विराजमान हैं. यह धन- संपदा और वैभव का प्रतीक भी है. तमिल परंपरा में सेंगोल राजा को याद दिलाता है कि उसके पास न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने के लिए एक प्रतीक है.

sengol शब्द का अर्थ

sengol शब्द तमिल भाषा के सेम्मई शब्द से बना है. सेम्मई का अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा सैंगोल हमारे इतिहास की पुरानी परंपरा है. नए संसद भवन के उद्घाटन के समय sengol जनता के सामने रखा जाएगा.

What is sengol? क्या है संगोल? जानें भारत के राजदंड का इतिहास
भारतीय इतिहास के हर युग में सत्ता हस्तांतर कोई ना कोई एक प्रतीक रहा है. राजा और महाराजाओं के युग में मुकुट को सत्ता हस्तांतरण प्रतीक माना जाता था. राजा के मुकुट में संप्रभुता का बास था. जब भगवान राम बन को चले गए थे तब भरत ने उनके खड़ाऊ रखकर शासन किया था.

                  सेंगोल का इतिहास बहुत पुराना है यह प्रक्रिया मौर्य और गुप्त वंश काल से ही शुरू होता है, परन्तु यह सबसे अधिक चोल वंश शासन काल में चर्चित हुआ. भारत के दक्षिण भाग में चोल साम्राज्य( 907 से 1310 ईस्वी) का शासन रहा. इस वंश में राजेंद्र चोल( प्रथम) और राजाराज चोल जैसे प्रतापी राजा हुए.
                     तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी जाती है. चोल राजाओं का राज्याभिषेक तंजौर, गंगइकोंडचोलपुरम्, चिदम्बरम् और कांचीपुरम् में होता था. उस वक्त पुरोहित राजाओं को चक्रवर्ती उपाधि के साथ ही सेंगोल सौंपते थे.
चोल साम्राज्य में राजा ही सर्वोच्च न्याय अधिकारी होते थे. राजा विद्वानों और मंत्रियों के सहारे 2 तरह की सजा सुनाते थे. इसमें पहला, मृत्युदंड और दूसरा आर्थिक दंड. आर्थिक दंड में सोने के सिक्के लिए जाते थे.
                               चोल साम्राज्य की स्थापना राजा विजयालय ने की थी. उन्होंने सत्ता में आने के लिये पल्लवों को हराया. मध्यकाल चोलों के लिए पूर्ण शक्ति और विकास का युग था. इसी दौरान चोल शासकों ने दक्षिण भारत के साथ- साथ श्रीलंका पर भी कब्जा जमा लिया था.
             कुलोतुंग चोल ने मजबूत शासन स्थापित करने के लिये कलिंग( ओडिशा) पर भी कब्जा कर लिया था. राजेंद्र चोल( तृतीय) इस राजवंश के अंतिम शासक थे.चोल राजवंश के बाद दक्षिण की सत्ता में विजयनगर साम्राज्य स्थापित हो गया और धीरे- धीरे सेंगोल का इतिहास पुराना होता गया. आजादी के वक्त सेंगोल फिर से चर्चा में आया था.

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