राम राज्य शासन की आदर्श संकल्पना || Ideal Concept of Ram Rajya Governance||सबके राम

राम राज्य शासन की आदर्श संकल्पना || Ideal Concept of Ram Rajya Governance||सबके राम:- भारतीय जन मानस में राम बहुत गहरे समाए हुए आराध्य ही नहीं हर रूप में सामने आने वाले आदर्श व्यक्ति भी हैं वे जन जन के ऐसे प्रेरणा स्रोत हैं. जिन्होंने कर्तव्य निर्वहन का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया. जो भारत ही नहीं सारी दुनिया और समस्त मानवता के लिए अनुकरणीय है. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कर्तव्य पालन की जो सही सीख आज भी राह दिखाती है. इसी से यह राष्ट्र हर दिन, हर क्षण प्रेरणा लेता है और इसीलिए राम भले ही त्रेता युग में हुए हो, लेकिन इस युग में भी यह पूरी तरह प्रासंगिक है. आज भी इस समय परिस्थितियां वही है और अनेक व्यक्ति संकट में घिरे हुए, राम की भूमिका में है.आज राम के आदर्श पूरे विश्व को दिशा दे रहे हैं. राम का जीवन एक मानव चेतना का उत्कर्ष है. क्योंकि ना पूरा विश्व राम के जीवन और राम से प्रेरणा ले. श्री राम को अपने जीवन में उतार कर विश्व का स्वरूप सुंदरतम हो सकता है.राम का जीवन आज की दुनिया के संदर्भ में विशुद्ध नैतिकता का संदेश है. जो शासकों को अपने कर्तव्य पालन की शिक्षा देता है. राम को सार्वजनिक रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित करता है. मनुष्य का जीवन अनुशासन और मर्यादा चाहता है. ऐसी मर्यादा होनी चाहिए. इन्हीं सीमाओं का निरूपण राम के जीवन में मिलता है. राम के समय का हर चरित्र हमें हर घर में मिल जाएगा.

सबके राम

वाल्मीकि कथा को तुलसी ने ” सियाराम मय सब जग जानी” मानकर लिखा,लक्ष्मण भरत, हनुमान, सुग्रीव तथा विभीषण आदि पात्रों के सहारे इस तरह के राजघराने की इस कहानी में साधारण व्यक्ति को उसकी अपनी कथा व्यथा दिखाई देती है. रावण सुपरखा, बाली,कुंभकरण,मेघनाथ मंदोदरी, अंगद,आदि सभी पात्र आज भी जीवंत से लगते है. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने एक आज्ञाकारी पुत्र, विनम्र युवराज के रूप में सिहासन छोड़कर अपनी सौतेली मां और पिता के आदेश को शिरोधार्य किया. दूसरी ओर भाई- भाई के संबंध कैसे हो? इस प्रश्न का उत्तर लक्ष्मण और भरत के चित्रों में तलाशा जा सकता है. हर घर का बुजुर्ग यह चाहता है कि उनके बच्चे मकान- दुकान के लिए ना लड़े और एक दूसरे के साथ प्रेम से रहें. भरत अयोध्या के साम्राज्य को राम की खड़ाऊ सिहासन पर रखकर चलाते हैं. जो त्याग और उत्तरदायित्व का स्वरूप है. जिसकी आज आवश्यकता है. राम के समय के नारी पात्र भी शालीन और गरिमा पूर्ण है. सीता आदर्श से सहधर्मिणी और अर्धांगिनी है. उर्मिला भी पति परायण और सीता की सच्ची बहन है. मंदोदरी भी अपने विद्वान पति रावण को उसकी राक्षसी प्रवृत्ति के प्रति सचेत करती है. यह सभी वृतिया आज भी समाज में जिंदा है. विभीषण के दलबदल पर भले ही आज बहस हो सकती है. पर अंततः रावण के पुतले का दहन यह निष्कर्ष देता है कि असत्य पर सत्य की विजय एक शाश्वत सत्य है. राम का जीवन मानवता की चिरंतन गाथा का प्रतीक है. इसी देश काल के संदर्भ में पेश किए जाने की आवश्यकता है. अज्ञान, अधर्म, अनाचार, और अपराध के संघर्ष समय-समय पर दोहराए जाते हैं.

आज भी ऐसे व्यक्तियों को नष्ट करने की आवश्यकता है. यह तभी संभव होगा जब राम कथा में आज की समस्याओं के हल ढूंढे जाएंगे. हम राम के आदर्शो को अपनेेे जीवन में उतारे, जो रामचरित्र सदा प्रसांगिक है,कालातीत है. सामाजिक सरोकारों के जिन मानदंडों को भगवान राम ने स्थापित किया. उनकी आज आवश्यकता है. महात्मा गांधी जी ने प्रसिद्ध दांडी मार्च के दौरान अनेक भ्रांतियों के निवारण के लिए 20 मार्च, 1930 को हिन्दी पत्रिका ‘नवजीवन’ में ‘स्वराज्य और रामराज्य’ शीर्षक से एक आर्टिकल लिखा था. जिसमें गांधीजी ने कहा था- ‘स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किए जाएं, तो भी मेरे नजदीक तो उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है, और वह है रामराज्य. यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा. रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा. आज आवश्यकता है यह संकल्प लेने की कि हम भारत के लोग राम की जय करते और उनकी गाथा गाते कर्तव्य पर चलते रहेंगे बिना थके बिना रुके.

दूरदृष्टा राम

किसी भी समाज का नेतृत्व करने वाले नायक के लिए जरूरी गुण है. उसका स्पष्ट दृष्टिकोण. राम का दृष्टिकोण सत्य और अर्धम का नाश करना, सत्य और न्याय को स्थापित करना था. वे एक ऐसे राज्य की स्थापना करना चाहते थे, जिसमें प्रजा को कोई कष्ट ना हो. उनका कहना था जिस राजा के राज्य में प्रजा दुखी होती है. वह राजा राज करने के लायक नहीं है.

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,

सो नृप अवसि नरक अधिकारी.

इस बात से स्पष्ट होता है कि एक राजा का जनता के प्रति क्या कर्तव्य है? इस बात को स्पष्ट करता है.

राम के जीवन मूल्य

राम का पूरा जीवन ही मूल्य का भंडार लगता है.माता-पिता की आज्ञा का पालन, प्रजा वत्सलय, के साथ साथ दीन- दलित का उद्धार जैसे तमाम मूल्य के उदाहरण एक साथ देखने हो. तो राम का चरित्र देखना चाहिए. विश्वास का सबसे बढ़िया उदाहरण भी राम के चरित्र में ही मिलता है. जब भरत राम को मना कर वापस ले जाने के लिए आते हैं. तो लक्ष्मण को शंका होती है कि राजमद में चूर भरत श्री राम को मारने आ रहे हैं. लक्ष्मण युद्ध को तत्पर हो जाते हैं लेकिन राम उन्हें समझाते हुए कहते हैं. भरत को राजपाठ तो क्या यदि ब्रह्मा, विष्णु और महेश का पद भी मिल जाए तब भी उन्हें राजमद नहीं हो सकता. है ना विश्वास की पराकाष्ठा. राम- रावण संग्राम भी दर्शन मूल्य की स्थापना का ही संघर्ष है. राम जिन मूल्यों के सहारे जीतना चाहते हैं. इसका खूबसूरत वर्णन रामचरितमानस के लंका कांड में मिलता है. तुलसी दासी लिखते हैं-

रावण रथी विरथ रघुवीरा,

देखि विभीषन भयउ अधीरा.

विभीषण की अधिरता के जवाब में राम कहते हैं.तो राम के इस दर्शन में संपूर्ण जीवन मूल्यों को समझा जा सकता है. वह कहते हैं- मेरे पास धर्म का रथ है, इस धर्म रथ की व्याख्या करते हुए वह कहते हैं. शौर्य और धैर्य उसे रथ के पहिए हैं जिस पर सत्य और शील का ध्वज लहरा रहा है, बल, विवेक, दम और परोपकार के घोड़े इसमें जुटे हुए हैं. जो क्षम, कृपा और समता की रस्सी से बंधे हैं, सबसे बड़ी बात यह है कि राम को इन जीवन मूल्यों का पूरा विश्वास है.दूसरों के हित का एक ऐसा जीवन मूल्य जिस पर राम बार-बार जोर देते हैं. अपनी प्रजा को भी यह जीवन मूल्य देते हुए कहते हैं-

परहित सरस धर्म ने भाई,

पर पीड़ा सम नहीं अधमई

रणनीतिकार राम

रामएक ऐसी रणनीतिकार हैंजोलोक मानस से राक्षसों के भाई को मिटाने के लिएऐसी रणनीति बनाते हैंकी वानर भालू की सेवा को हीरक्षों से लड़ने के लिए तैयार किया जाता हैरामसेतु बनाने से लेकर लंका विजय तकउन्होंने अपने दल की हर सदस्य की क्षमता का पूरा-पूराउपयोग करऐसी रणनीति बनाईकि आज युगों बाद भीलोग उन्हें याद करते हैंराम चाहते तो अकेले ही लंका विजय कर सकते थे.

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प्रेरणादायक राम

किसी भी लीडर की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने लोगों को कितना प्रोत्साहित मोटिवेट करता है.राम ही नहीं उनके दल के दूसरी पंक्ति के लीडर भी बहुत अच्छे मोटिवेशनल थे और वह लोग मोटिवेशन के महत्व को भी अच्छी तरह समझते थे. जामवंत उसे पंक्ति में सबसे आगे थे. जब हनुमान अपनी समर्थ को भूल रहे थे, तब जामवंत ने उनकी क्षमता का उन्हें एहसास कराया और उन्होंने हनुमानजी कहा-

कवन सुकाज कठिन जग माही,

जो नहिं होई तात तुम्ह पाहीं.

सफलता का श्रेय टीम को देने वाले राम

एक अच्छे लीडर की क्वालिटी होती है कि वह अपनी सफलता का श्रेय खुद लेने की जगह अपनी टीम और उसमें सहभागिता करने वाले लोगों को देता है. इसका सबसे सर्वोत्तम उदाहरण मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम है. इस दृष्टि से भी राम एक महानायक साबित होते हैं. कितनी सहजता से वह अपने जीत का श्रेयगुरु वशिष्ठ की कृपा और वानर- भालू की सेना को दे देते हैं. यही नहीं वह वानर भालू को भरत से भी अधिक प्रिय बढ़कर,मानते है. उनकी मैत्री और कर्तव्य परायणता को परिवारवाद से ऊपर स्थापित कर देते हैं. जबकि इसके विपरीत रावण के चरित्र को देखिए. वह महान योद्धा होने के बावजूद महानायक नहीं बन पाता है. क्योंकि उसे सिर्फ अपनी भुजबल पर घमंड है. वह कहता है कि मैंने अपनी भुजाओं के बल पर राम से दुश्मनी मोल ली है.

राम का शासन

राम राज्य शासन की आदर्श संकल्पना है यह ऐसी राजव्यवस्था जहां न कोई दुखी हो और ना ही अफवाहो से ग्रस्त हो जहां जन-जन भयमुक्त हो और चतुर्दिक शांति हो, जहां का शासन सभी के लिए मंगलकारी हो .

राम की मर्यादा

राम इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाऐ क्योंकि उन्होंने हर परिस्थित में मर्यादा की रक्षा की और स्थापित किया कि सत्यनिष्ठता, कर्मनिष्ठता और धर्मनिष्ठता ही आचरण की मर्यादा है तथा उससे सभी बंदे हुऐ है और वह हर रूप में मर्यादा के प्रतीक थे इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है.

राम की नेतृत्व क्षमता

राम सबको साथ लेकर चलने के मामले में अद्वितीय थे. समाज के सभी वंचित, शोषित,पिछडे वर्गों को आदर देना उनका स्वभाव है और उनमें आत्मविश्वास पैदा करके उनको अपना सहयोगी बना लेते थे.

शौर्य के प्रतीक राम

जिस प्रकार साधारण जन समुदाय में समुद्र पर जाने का साहस जगा कर और परम पराक्रमी रावण की दिग्विजयी सेना को परास्त कर राम ने स्थापित किया कि केवल सैन्य बल ही शौर्य का परिचायक नहीं होता, वह अपने शौर्य के बल पर हर चुनौती पर विजय पा लेते थे.

राम का लोकतंत्र

राम इस सीमा तक लोकतांत्रिक है कि एक अवसर पर कहते हैं यदि अनुमति हो तो कुछ कहूं और यदि मेरे कहे में कुछ अनुचित दिखे तो मुझे टोक दे. मैं सुधार कर लूंगा और अपने राज्य में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की राय के आधार पर फैसला लेने में हिचकिचाते नहीं थे.उन्हें मालूम था की राजा कुछ गलत भी कहेगा, तो लोग डर के मारे उसके निर्णय के बारे में कुछ नहीं कहेंगे. इसलिए उन्होंने जनता से खुद ही आग्रह किया है-

जौं अनीति कछु भाषौं भाई।

तौं मोहि बरजहु भय बिसराई।।

हे भाई! यदि मैं कुछ अनीति की बात कहूँ तो भय भुलाकर (बेखटके) मुझे रोक देना. यही रामत्व है.

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